निजी स्कूलों में पढ़ाई हुई और महंगी, फीस में २५ से 30% की बढ़ोतरी नियमों को तोड़ने पर होगी सख्त कार्यवाही

कोरोना से राहत के बाद सभी तरह के प्रतिबंध हटाने के बाद लोगों का व्यवसाय, नौकरी और रोजगार नियमित होने लगी है लेकिन महंगाई ने कमर तोड़ दी है. केवल खाने-पीने की वस्तुओं में ही नहीं बल्कि प्राइवेट स्कूलों की फीस में भी 20-30 फीसदी तक वृद्धि की गई है. अगले सत्र के लिए प्रवेश लेने वाले अभिभावकों के साथ ही अगली कक्षा में प्रवेश के लिए अपनी जेबें ढीली करनी पड़ रही है.

कोरोना काल में स्कूल ऑफलाइन नहीं लगी लेकिन ऑनलाइन होने के बाद भी फीस में पालकों को राहत नहीं मिली. जैसे-तैसे अभिभावकों ने फीस जमा की. जिन अभिभावकों के लिए फीस भरना मुश्किल हो रहा था, उन्होंने अपने बच्चों को अन्य स्कूलों में दाखिला दिया है लेकिन इससे भी राहत मिलती नजर नहीं आ रही है. नर्सरी से लेकर फर्स्ट स्टैंडर्ड में प्रवेश हेतु प्रक्रिया शुरू हो गई है. अधिकांश स्कूलों में तो प्रवेश भी पूरे हो चुके है.

महंगाई का हवाला देते हुए प्राइवेट स्कूलों ने फीस में वृद्धि की है. कहीं 20 तो किसी ने 30 फीसदी तक की वृद्धि की हैं. स्कूलों का कहना हैं कि महंगाई हर स्तर पर बढ़ी है. इस हालत में टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ की सैलरी भी बढ़ाना आवश्यक हो गया है. यही वजह है कि फीस में वृद्धि की जा रही है. सभी स्कूलों ने अपने-अपने तरीके से फीस में बढ़ोतरी की है. जबकि नियमानुसार इस तरह की फीस वृद्धि अनुचित है. राज्य सरकार के कानून के अनुसार फीस के निर्धारण और वृद्धि के लिए महाराष्ट्र शैक्षिक संस्थान (शुल्क विनियमन) अधिनियम, 2011 अधिनियमित किया है.

तद्नुसार अभिभावक-शिक्षक संघ का गठन करना अनिवार्य है, इस समिति की सूची सूचना पटल पर चस्पा किया जाना चाहिए. फीस वृद्धि का प्रस्ताव अभिभावक-शिक्षक संघ को अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किया जाना चाहिए. हालांकि 2-3 साल में 12-15 फीसदी फीस बढ़ाने का नियम है लेकिन इसका पालन नहीं हो रहा है. कई स्कूलों ने शिक्षक-अभिभावक समिति के गठन के बिना कई स्कूलों में फीस तय करके फीस में वृद्धि की है.

जून के तीसरे सप्ताह से स्कूल शुरू हो जाएगी. जिस तरह पेट्रोल और डीजल के दाम में आग लगी हुई है, उसका असर स्कूल बस, वैन और ऑटो में भी देखने को मिलेगा. फीस वृद्धि के साथ ही स्कूल बस का किराया भी बढ़ा दिया गया है. यह बढ़ोतरी फीस की वृद्धि से भी अधिक हो सकती हैं. कुछ स्कूलों ने स्पष्ट कर दिया है कि भविष्य में ईंधन के दाम बढ़ने पर बस के किराये में और वृद्धि की जा सकती है. इसका मतलब साफ है कि अब पालकों की जेब ढीली होने का सिलसिला जारी ही रहेगा.